Diya Jethwani

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वफ़ा ना रास आईं..... 💔 (1)

ये कहानी हैं नब्बे के दशक की.... उस वक्त आज की तरह मोबाइल फोन नहीं हुआ करते थे...ओर जब आए भी तो सिर्फ कुछ गिने चुने लोगों के पास ही हुआ करते थे...। कहानी की शुरुआत करते हैं इस कहानी की नायिका दिप्ती के घर से.... जिसे घर पर सभी दिपु के नाम से पुकारते हैं...। 


दिपु.... वो अंकिता के घर जा ओर तेरे माप की एक अच्छी सी ड्रेस ले आ.... कल लड़के वाले आ रहें हैं । अब तेरे पास तो कोई ढंग का कपड़ा हैं नहीं...। जन्मपत्री बहुत अच्छी मिल गई हैं... ओर रिश्ता भी तेरी मासी ने ही भेजा हैं तो कोई चिंता भी नहीं हैं...। 


जी मम्मी.. 


ओर सुन मासी को भी बोलकर आना कल समय पर आ जाए...। मैंने बात तो निकाली हैं पर फिर भी याद दिला देना... कल दोपहर बारह बजे आएंगे...। 


जी... बोल दूंगी....। 


मन मारकर दिपु अपने घर के पास ही रहने वाली अपनी दूसरी मासी के घर चल दी...। उसकी बेटी अंकिता और दिपु की कदकाठी हुबहू थीं... तो दिप्ती अकसर उसके कपड़े पहना करतीं थीं...। चूंकि दिप्ती के परिवार की आर्थिक हालत ठीक नहीं थीं.... इसलिए वो खुद के लिए कभी किसी भी तरह का कोई सामान नहीं खरीदती थीं... या फिर यूं कह ले की खरीदने की चाह तो होतीं थीं पर परिवार की स्थिति देखकर अपना मन मार लेतीं थीं...। दिखने में एकदम साधारण सी थीं दिप्ती... ना कभी कोई सजावट ना कोई आडंबर.... बिल्कुल साधारण सी पतली दुबली सी थीं वो..। अपनी दूसरी चचेरी और मौसेरी बहनों में से सबसे अलग....। 
लंबे काले बाल पर हमेशा चोटी से गुंथे हुवे.... साफ सुथरा चेहरा पर बिना मेकअप का.... उंचाई भी साधारण सी... बातचीत का अंदाज शायद किसी को पता नहीं.... क्योंकि काम से ज्यादा कभी किसी से बात  ही नहीं.....। 
बारहवीं की पढ़ाई पूरी करके अभी तो उसने कोलेज में दाखिला लिया था... ओर अभी से घर देखने की बातें.... उसकी रजामंदी तो बिल्कुल नहीं थीं.... क्योंकि वो पढ़ना चाहतीं थीं.... लेकिन बिती रात उसने जब अपने पेरेंट्स की बातें सुनी तो उसके बाद कुछ बोलने की उसकी हिम्मत ही नहीं हुई....। वो हजारों तरह की बातें सोचते सोचते अपनी मासी के घर पहुंचीं और मासी को सब बातें बताकर उसकी बेटी अंकिता से हल्के नीले रंग का एक सूट ले आई...। हालांकि उसे सूट पसंद नहीं आया था क्योंकि उसे हल्के रंग बिल्कुल अच्छे नहीं लगते थे.... लेकिन अपने स्वभाव वश वो किसी को कुछ नहीं बोल पाई... ना ही अपनी पसंद नापसंद बता पाई... चुपचाप उन्होंने जो दिया वो लेकर घर वापस आ गई....। 


जहां एक तरफ़ उसकी मम्मी कल की तैयारियों में लगी थीं... वहीं दूसरी तरफ़ दिपु हमेशा की तरह एक बंद कमरे में अकेली खिड़की के बाहर मुख्य सड़क पर आने जाने वाले वाहनों को देखकर ना जाने कहां खोई हुई थीं....। 


दिपु और उसकी मम्मी के अलावा उसके पापा और उसके तीन भाई भी उनके साथ रहते थे...। एक बड़ी बहन भी थीं दिपु की.... जिसकी शादी दो वर्ष पूर्व ही हुई थीं...। बचपन से ही दिपु को उसके परिवार में किसी का भी कभी प्यार नहीं मिला था...। तीनों छोटे भाइयों ने और उसकी बड़ी बहन ने हमेशा उसके साधारण व्यक्तित्व का मखौल ही बनाया था...। उसकी मम्मी खुद बातों बातों में बहुत बार बता चुकी थीं की उसकी पैदाइश के बाद उसके पिता ने छह महीनों तक उसकी शक्ल भी नहीं देखी थीं....। ना ही उसके पापा ने कभी उसे गोद में उठाया था....। 

पहले सयुंक्त परिवार में रहने के कारण दिपु की मम्मी भी अक्सर अपनी सारी थकान या गुस्सा दिपु पर ही निकालती थीं... दिपु बचपन से अपनी मम्मी, भाई और बहनों की मार खा खाकर बड़ी हुई थीं...। इन सबके ऐसे रवैये की वजह से वो अपने भीतर  ही भीतर बहुत सहम चुकी थीं...। एक खामोशी और अकेलापन उसने अपना लिया था...। 

चार वर्ष पूर्व उसके दादाजी के देहांत के बाद सयुंक्त परिवार अब एकल परिवार में तब्दील हो चुका था...। उसके तीनों चाचा अब अलग हो चुके थे...। रहते पास ही पास थे....। उसके दादा जी किसी भी तरह की कोई वसीयत बनाकर नहीं गयें थे... जिसका उसके चाचाओं ने भरपूर फायदा उठाया और दिपु के पिताजी के आगे रोना रोकर उनका छोड़ा गया सारा कर्जा उनके मत्थे मड़ दिया था और मकान भी सबसे जर्जर उनको दिया था....। दिपु की मम्मी इन सबका विरोध करतीं रह गयीं पर पति के आगे उसकी एक ना चलीं....। धीरे धीरे घर की आर्थिक हालत बिगड़ती गयीं.... एक वक्त तो ऐसा आया जब उनके पास खाना खाने के भी पैसे नहीं होतें थे...। 

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दिप्ती की जिंदगी में क्या क्या होगा और क्या शादी के बाद उसका नसीब बदलेगा....?? 

जानते हैं अगले भाग में...। 



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5 Comments

Shnaya

07-Feb-2024 07:42 PM

Nice

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Gunjan Kamal

07-Feb-2024 06:43 PM

👏👌

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Alka jain

05-Feb-2024 11:07 PM

Nice

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